Friday, June 19, 2020

हज़ार

कुछ फूल बन गए , कुछ बहार बन गए।
कुछ एक से दो और कुछ  दो दुनी चार बन गए।
हम अकेले थे, सूखे पत्ते की तरह टूट गए।
पर जब जमीन पे गिरे तो हम भी हजार बन गए।

किसी ने चलना सीख लिया और किसी ने दौड़ना।
कुछ हमसे आगे चले गए, तो कुछ जमाने से आगे निकल गए।
आंखे मूंदे हम वहीं रह गए, कभी जम गए कभी पिघल गए।
इतने जले की चमक उठे और लोगो का दीदार बन गए।
जब जमीन पे गिरे तो हम भी हजार बन गए।


किसी ने बेचना सिख लिया किसी ने खरीदना।
किसी ने जिंदगी सीखी तो किसी ने जीना।
हम खाली हाथ ही चले थे और खाली ही रह गए।
पर जब मुड़ के देखा तो हम ही बाज़ार बन गए।
जब जमीन पे गिरे तो हम भी हजार बन गए।

कोई जीते जी जीत गया कोई जीत के जी गया।
किसी को सब जान गए किसी का लोहा सब मान गए।
हमारी जीत भी गुमनाम रही और जान भी अनजान रही।
इतना जिताया लोगो को की हम एक मशहूर हार बन गए।
जब जमीन पे गिरे तो हम भी हजार बन गए।